About the book
कविता तब नहीं आती जब आमंत्रित की जाती है। ये आती हैं वीरान टूटे दिल से, हिज़्र की रुसवाइयों में
जल कर जब अश्रुओं से सिंचित होती हैं तब दिल की दरारों से भावों की कोंपलें फूटतीं हैं, अलंकार रूपक
छंदों से सजतीं हैं, निर्झर शब्दों में बहती हैं तब अनायास बन जाती है कविता। मन के मनके भी कुछ
ऐसी ही कविताओं का संग्रह है जो मन की गहराइयों से उद्ध्रित भाव रूपी मनकों को शब्दों में पिरो कर
गढ़ा गया है। यह डाw रेणु मिश्रा का तीसरा काव्य संग्रह है जिसमें श्रृंगार रस के अलावा सामाजिक,
राजनीतिक, सामयिक हर विषय पर कविताएं लिखी गयीं हैं जो आपको जरूर पसंद आएंगी और आप
इन्हें बार बार पढ़ना चाहेंगे।