इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य मात्रा यह जताना नहीं है की सैनिक यु( में कितनी बहादुरी से लड़ सकता है बल्कि मेरा उद्देश्य यह है कि जब आप एक जिम्मेदारी के पद पर अपने सैनिको की कमान संभाले हुए है, तब आपका उद्देश्य पहले राष्ट्रहित पिफर अपने से नीचे कार्य कर रहे कर्मियों का हित और फिर स्वयं का हित करना होता है। कैप्टन महेन्द्र नाथ मल्ला ने इसी को ध्यान में रखते हुए पहले राष्ट्रहित में खतरे को जानते हुए आगे चलने का फैसला लिया। अपने यु(पोत के क्षतिग्रस्त हो जाने पर भी उन्होंने धैर्य नहीं छोड़ा और अपनी जीवन रक्षक जैकेट को अंतिम नाविक को देकर उसे सुरक्षित निकाला ताकि वे अगले दिन के यु( में पिफर से लड़ सकें। इसी प्रक्रिया को जारी रखते हुए आई.एन.एस. खुखरी को भी बचाने का प्रयास जारी रखा। अन्त में आई.एन.एस. खुखरी जिसे जहाज का कैप्टन अपनी माँ मानता है उसके साथ हमेशा के लिए समुद्र की गहराईयो में अपनी माँ की गोद में सो गया।
मेरा उद्देश्य उनकी इसी भावना को हर जनमानस तक तक पहुचाना और नौसेना के इतिहास को राजभाषा हिंदी में लिखकर हर एक व्यक्ति तक ले जाना है।