गांव का दामन कहीं का भी हो सकता है। देश के किसी भी सूबे, जनपद, तहसील और छोटे-बड़े किसी भी गांव से संबंधित हो सकती है यह कथा।हर गांव की अपनी-अपनी समस्याएं हैं। क्षेत्रानुसार, कृषि भूमि अनुसार,भौगोलिक स्थिति के अनुसार, इसके साथ-साथ अंतर भाषा का, पहनावेका, खान-पान का, फसलों का हो सकता है लेकिन ग्रामीण परिवेश लगभगसभी गांवों का एक जैसा ही पाया मैंने देश के लगभग आठ सौ गांवोंमें। बड़ी रोचक, रोमांचक और रूचिकारक रही आठ सौ गांवों की यात्रा।
बहुत कुछ सीखने, समझने और जानने का अवसर मिला। खेती-बाड़ी केअतिरिक्त सामाजिक मान-मर्यादाओं, परंपराओं, रीति-रिवाजों, और आपसीमन-मुटाव के तमाम पहलुओं से रू-ब-रू हुआ। उनकी अपनी जिंदगी है।अपनी दुनिया है। एक निश्चित जीवन शैली है। उसमें बदलाव की गुंजाइशनहीं है। खेती-बाड़ी नियमबद्धता चाहती है। कुदरत के नियम कठोर अवश्यहैं लेकिन जो उसमें रम गया वह सफलता प्राप्त कर लेता है। कह सकतेहैं सफल किसान वही है जो वचनबद्धता से खेती करता है। यही कारण हैकि किसान और उसका परिवार सेहतमंद रहता है।
यह उपन्यास तो बहुत पहले प्रकाशित हो जाता लेकिन हमारे प्रकाशकमहोदय श्री सुनील भनोट जी ने विनम्र आग्रह किया कि इस कृति को उसअवसर पर प्रकाशित किया जाए जब धारावाहिक का प्रसारण दूरदर्शनकिसान पर होने जा रहा हो तो श्रेष्ठ रहेगा। उनका प्रस्ताव मुझे भी पसंदआया। अब जब प्रसारण का समय समीप आ रहा है तो उपन्यास केप्रकाशन का उत्तरदायित्व श्री सुनील भनोट जी संभाल रहे हैं। मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं। उपन्यास तैयार करते समय अनेक महानुभावों ने मेरी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सहायता की। इसके लिए मैं सभी का आभार व्यक्त करना अपना कर्तव्य समझता हूं।